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📢 "शोर अच्छा है!" - जब स्कूल की आवाज़ों में छिपा होता है बच्चों का भविष्य 🎶🎭📚

अक्सर हम सोचते हैं कि स्कूल में अगर शांति हो, तो पढ़ाई अच्छी होती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चों के हंसने, बोलने, गाने, नाचने और खेलने की आवाज़ें भी सीखने का हिस्सा हो सकती हैं? 😊 आज के इस ब्लॉग में हम बात करेंगे – "शोर अच्छा है!" 🥁🎤 कैसे बच्चों के शोर, गतिविधियों और नाट्य रूपों (Drama), संगीत 🎵, नृत्य 💃 और खेल ⚽ के माध्यम से सीखने को मज़ेदार, प्रभावशाली और स्थायी बनाया जा सकता है — और क्यों यह सब कुछ भारत की नई शिक्षा नीति (NEP) और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (NCF) के अनुरूप है।

🧠 बच्चों का दिमाग और "शोर" का रिश्ता

शोध बताते हैं कि शुरुआती वर्षों में बच्चों का मस्तिष्क बहुत तेज़ी से विकास करता है। इस दौरान अगर उन्हें खेलने, बोलने, नाचने, रंग भरने और अभिनय करने का मौका मिले, तो वे भावनात्मक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से बेहतर विकसित होते हैं। 🎨 उदाहरण के लिए – एक बच्चा जब रोल प्ले करता है, तो वह कल्पना, भाषा, भावनाएं और समस्या सुलझाने जैसी कई क्षमताओं को एकसाथ विकसित करता है।

🏫 "शोर" से भरे क्लासरूम में क्या-क्या होता है?

1. प्ले-बेस्ड लर्निंग (Play-Based Learning): बच्चे खेल-खेल में गिनती, रंग, आकार और शब्द सीखते हैं। इसमें उनकी रुचि बनी रहती है और सीखना बोझ नहीं लगता।

2. डांस और ड्रामा का समावेश: नृत्य और अभिनय के ज़रिए बच्चे अपने विचार व्यक्त करना, आत्मविश्वास बढ़ाना और दूसरों से जुड़ना सीखते हैं।

3. समावेशी गतिविधियाँ: हर बच्चा अलग होता है – कोई बोलकर अच्छा सीखता है, कोई देखकर, कोई करके। गतिविधियों से भरपूर "शोर वाला क्लासरूम" हर बच्चे की ज़रूरत को पूरा करता है। 👧👦

📚 NEP 2020 और NCF में "शोर" की जगह

NEP 2020 और NCF दोनों ही यह मानते हैं कि सीखना तभी प्रभावी होता है जब यह "अनुभवात्मक (experiential)", "मनोरंजक", और "बच्चा-केंद्रित" हो।

इन नीतियों में नाटक, कला, खेल, कहानियों और प्रोजेक्ट-आधारित लर्निंग को केंद्र में रखा गया है – और यही तो है हमारे "शोर वाले" क्लासरूम का आधार। 🎭📖🛝

👨‍👩‍👧‍👦 अभिभावकों और शिक्षकों के लिए संदेश

शोर से डरिए नहीं, समझिए!

जब आपका बच्चा गा रहा होता है, तालियाँ बजा रहा होता है, मंच पर कुछ कहने की कोशिश कर रहा होता है – वह सीख रहा होता है, निखर रहा होता है।

  • शिक्षकों के लिए यह ज़रूरी है कि वे पढ़ाई को सिर्फ किताबों तक सीमित न रखें।

  • अभिभावकों को भी बच्चों की "खेलती हुई पढ़ाई" को समझना होगा और प्रोत्साहित करना होगा।

✨ निष्कर्ष:

"शोर अच्छा है" – क्योंकि यह उस स्कूल का प्रतीक है जहाँ बच्चे सिर्फ पढ़ते नहीं, जीते हैं।

जहाँ नाचते-गाते हुए वे अपने आत्मविश्वास को तलाशते हैं, और जहाँ हर गतिविधि उनके मस्तिष्क के विकास की एक ईंट बनती है।

तो आइए, हम सब मिलकर ऐसा शोरगुल भरा स्कूल बनाएं, जो सीखने के हर रंग से भरपूर हो! 🌈📚💃🎭

क्योंकि जब बच्चे बोलते हैं, हँसते हैं, गाते हैं – तभी असली शिक्षा होती है। और वही शोर – कल के शांत, समझदार और सक्षम नागरिक बनाता है। 🙌🇮🇳

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